Friday, June 4, 2010

गरीबी और आत्मसम्मान .........

10 अप्रैल 2010:

रात के 10:40 मिनट। ट्रेन को तो यूँ 10 बजे पटना पहुँच जाना चाहिए था, मगर ......... भारतीय रेल जिंदाबाद !!!!!!!!!
8 घंटे के सफ़र में 3 घंटे की देरी.... वह भी शताब्दी एक्सप्रेस में !!!!!!!

खैर, ट्रेन जसीडिह (झारखण्ड) स्टेशन से चली। कुछ देर बाद मेरी नज़र बगल वाली सीट पर गयी। एक बुज़ुर्ग काफी देर से उस सीट के सामने खड़े थे, बहुत मायूस सा चेहरा बनाये हुए। उस सीट पर एक मोहतरमा बैठी हुई थी, जिनकी फ़ोन की घंटी हर उस जगह बजती, जहाँ मोबाइल का network आता। शायद उनके पास Vodaphone है और Hutch के प्यारे से कुत्ते ने अभी भी पीछा नहीं छोड़ा :o)

खैर, उन मोहतरमा की तो नज़र उन बुज़ुर्ग पर नहीं गयी। अब फ़ोन से उनका ध्यान हटे तब ना। मगर मेरे सामने बैठे एक युवक ने उन बुज़ुर्ग से पूछा, " बाबा, भीख मांग रहें हैं क्या, पैसे चाहिए या कुछ और।"

बाबा कुछ 75 साल के लग रहे थे, काफी कमज़ोर और बीमार से। आवाज़ भी दबी हुई सी निकली, जो ट्रेन की शोर में बड़ी मुश्किल से सुनाई दिया, " नहीं बेटा, माला बेच रहा हूँसोचा की बिटिया को पसंद आएगा।"
मगर बिटिया की नज़र बाबा और उनके हाथ में पड़ी मालाओं पड़े तब ना। बड़े भारी दिल से हमारी सीट की तरफ बढ़े, उनके हाथ में करीब 20 मालाएं थी। पता नहीं क्यों, मगर मेरा मन भी हुआ यह माला खरीदने का। मैने और मेरे साथ बैठे सज्जन, हम दोनों ने 2-2 मालाएं खरीदीं, 10-10 रुपये में। दूसरी तरफ बैठे ने उनकी तरफ 5 रुपये बढ़ाये। बाबा ने उनसे कहा, "10 रुपये में है बाबूजी"। उन सज्जन ने माला लेने से इनकार किया और कहा, "माला नहीं चाहिए, पैसे रख लीजिये।" तभी मैंने उनसे कहा, "भाईसाब, माला ले लीजिये, यह भीख नहीं मांग रहे हैंइनका अपमान मत कीजिये।" सज्जन ने हँसते हुए 5 रुपए और निकाले और माला ले ली। थोड़ी ही देर में 10 और मालाएं बिक गयीं हमारे डब्बे में।

मैं बस यही सोच रहा था की मैं क्या करूंगा इन मालाओं का, किसे दूंगा....इतनी सुन्दर भी ना थी..... और क्यों खरीदी।

ट्रेन क्यूल जंक्शन पहुंची और मैं बाहर प्लेटफ़ॉर्म पर निकला। बाबा भी दरवाज़े पर खड़े थे और अनायास ही उनसे बात करने की इच्छा हुई। मैं और २ अन्य सज्जन, बाबा से बात करने लगे।

उनकी उम्र कुछ 65 साल ही थी, 75 नहीं। बाबाधाम (एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल) के रहने वाले थे। पेशे से किसान थे। उनका बेटा भी खेती करता था, मगर मुश्किल से ही गुज़र बसर हो पाता था। मुझे तो ज्यादा पता नहीं था की बाबाधाम कितनी दूर है, मगर साथ में खड़े सज्जन बोले की 2 बजे से पहले घर नहीं पहुंचेंगे। मगर बाबा को तो पटना ही जाना था। लालू यादव से मिलने। पहले भी मिलने आये थे, मगर घर स्टेशन से दूर था। इस उम्र में उनके लिए पैदल जाना मुश्किल था और रिक्शे वाला 20 रुपये मांगता था। मुस्कुराते हुए उन्होंने कहा, " अभी काफी पैसे हो गए हैं और रिक्शे में जा सकूंगा।"

हम सभी उनकी बात सुन कर हंसने लगे। लालू को किसान और जनता की इतनी ही मदद करनी होती तो बिहार की आज यह हालत ना होती। खैर, उन्हें मिल लेने दीजिये लालू 'जी' से, खुश होने दीजिये।

ट्रेन क्यूल स्टेशन से चल दी। मैं यही सोच रहा था कि जब एक भिखारी चौराहे पर बैठ कर रोज़ 100 रुपये से ज्यादा कमा लेता है (जिसका ज़िक्र उच्चतम न्यायलय के न्यायाधीश भी करते हैं) , ऐसे में यह बुज़ुर्ग आधी रात को ट्रेन में माला क्यों बेच रहें हैं।

शायद ..........................एक किसान का आत्मसम्मान और खुद्दारी ही है, जो उसे भीख मांगने से रोकता है .......... शायद इसीलिए.............. महाराष्ट्र के विदर्भ में रोज़ 2 किसान आत्महत्या करते हैं ..........मगर सडकों पर भीख नहीं मांगते।

------------------------------------------------------------------------------------------------- खैर, ट्रेन क्यूल स्टेशन से चल पड़ी..... मैने किताब और नोटबुक खोली कुछ नोट्स बनाने के लिए.... मगर इस वाक्येय को लिखने लगा..... और ..................फ़ोन की घंटी फिर बजी...... किसकी.... यह भी कोई पूछने वाली बात है क्या :)
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6 comments:

  1. Food for thought! nicely written sandeep.

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  2. अच्छे अनुभव. प्रस्तुति भी लाजवाब. यूँ ही संवेदनशीलता बनी रहे और यही आज मनुष्य की वास्तविक पूँजी है.

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  3. आज समाज को संवेदनशील लोगों की जरूरत है। आज की भ्रष्ट समाज में संवेदनाएँ जिन्दा हैं, यह अपने आप में बडी बात है। ब्लॉग की शुरूआत करने के लिये ढेर सारी शुभकामनाएँ।-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा निरंकुश, सम्पादक-प्रेसपालिका (जयपुर से प्रकाशित पाक्षिक समाचार-पत्र) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) (जो दिल्ली से देश के सत्रह राज्यों में संचालित है। इस संगठन ने आज तक किसी गैर-सदस्य, या सरकार या अन्य बाहरी किसी भी व्यक्ति से एक पैसा भी अनुदान ग्रहण नहीं किया है। इसमें वर्तमान में ४३०९ आजीवन रजिस्टर्ड कार्यकर्ता सेवारत हैं।)। फोन : ०१४१-२२२२२२५ (सायं : ७ से ८) मो. ०९८२८५-०२६६६

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  4. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  5. हौसलाअव्जाई के लिए सभी का बहुत बहुत शुक्रिया :)

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